कल बस यूहीं समय की नदी पर पतवार चलाते चलाते सब कुछ छोड़ देने को जी किया, 
पर फिर अचानक उस कश्ती का ख्याल आया जिसने खुद को मेरे हाथों में सोप दिया, 
फिर क्या था न पतवार छोड़ी, न ज़िन्दगी, न सपने देखना, न कोशिश करना!!

Comments

Popular posts from this blog

What would a thriving rural space look like?

Learning to live consciously in 2016

When I am asked to join Youth Alliance..